भाग १

 

श्रीअरविन्द

 


श्रीअरविन्द


    (२१ मार्च को श्री से बार मिलने के बाद अगले दिन माताजी ने अपनी में भगवान को सम्बोधित करते हुए लिखा: )

 

 अगर हजारों लोग घने-से-घने अंधकार में धंसे हुए हैं तो कोई परवाह नहीं । जिन्हें हमने कल देखा वे तो धरती पर हैं; उनकी उपस्थिति इस बात को सिद्ध करने के लिए काफी है कि वह दिन आयेगा जब अंधकार प्रकाश में बदल जायेगा, और तेरा राज्य सचमुच धरती पर स्थापित होगा ।

 

     हे प्रभो, इस चमत्कार के ' दिव्य रचयिता '! जब मैं इस विषय में सोचती हूं तो मेरा हृदय आनन्द और कृतज्ञता से उमड़ने लगता हैं, और मेरी आशा की कोई सीमा नहीं रहती ।

 

      मेरी आराधना शब्दातीत है और मेरी श्रद्धा नीरव ।

 

३० मार्च १९१४

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जगत् के इतिहास में श्रीअरविन्द जिस चीज का प्रतिनिधित्व करते हैं वह कोई शिक्षा नहीं हैं, वह कोई अन्तःप्रकाश भी नहीं इ; वह है सीधे परम पुरुष से आयी निर्णायक क्रिया ।

 

१४ फरवरी ११६१

 

    ( ' आकाशवाणी : तिरुचिरापल्ली से प्रसारण के लिए दिया गया सन्देश )

 

श्रीअरविन्द धरती की आध्यात्मिक प्रगति के इतिहास में जिस चीज का प्रतिनिधित्व करते हैं वह कोई शिक्षा नहीं है, कोई अन्तःप्रकाश भी नहीं है वह है सीधी परम पुरुष से आनेवाली एक महती क्रिया ।

 

१५ अगस्त १९६४

 

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     ( श्रीअरविन्द की स्मृति में छापने वाले डाक-टिकट के जारी करने के समय दिया गया सन्देश )

 

वे धरती को यह आदेश देने आये हैं कि वह अपने प्रकाशमय भविष्य के लिए तैयारी करे ।

 

१५ अगस्त १९१४

 

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 श्रीअरविन्द जगत् के लिए दिव्य भविष्य का आश्वासन लाये ।

 

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श्रीअरविन्द धरती पर पुराने मतों अथवा पुरानी शिक्षाओं के साथ प्रतियोगिता करने के लिए कोई शिक्षा या मत लाने के लिए नहीं आये हैं, वे अतीत को पार करने का तरीका दिखाने और सन्निकट और अनिवार्य भविष्य के लिए सुस्पष्ट मांग बनाने आये हैं ।

 

२२ फरवरी १९६७
 

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श्रीअरविन्द अतीत के नहीं हैं और न ही इतिहास के ।

 

      श्रीअरविन्द वह ' भविष्य ' हैं जो चरितार्थ होने के लिए आगे बढ़ रहा है ।

 

      अत: हमें हुत प्रगति के लिए आवश्यक चिर यौवन को प्रश्रय देना चाहिये ताकि हम रास्ते पर फिसड्डी न बन जायें ।

 

 २ अप्रैल, १९६७